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ईश्वर है या नहीं?

ऋषि दयानंद के जीवन में एक घटना है जब स्वामी श्रद्धानंद जिनका नाम मुंशीराम था तो वह ऋषि दयानंद से प्रश्न करते हैं कि ईश्वर को सिद्ध करो तो ऋषि दयानंद ईश्वर की सिद्धि कर देते हैं लेकिन मुंशीराम जोकि कट्टर नास्तिक था कहता है कि आपने सिद्ध कर दिया लेकिन मैं तो ईश्वर को अभी भी नहीं मानता तो ऋषि दयानंद कहते हैं कि मनवा ना मेरा काम नहीं है अगर ईश्वर की तुझ पर कृपा हुई तो तू ईश्वर को मानेगा मेरा काम सिद्ध करने का था यह बताओ कि मैंने सिद्ध किया या नहीं।

यह स्वामी दयानंद का उपदेश है कि उन्होंने ईश्वर को सिद्ध किया हम तो अभी जानने पर खड़े हैं मानना कृपा होना अभी बहुत दूर है हम तो अभी पहली सीडी पर खड़े हैं कि क्या हम ईश्वर को जानते भी हैं क्या हम ईश्वर को जानते हैं यह बड़ी समस्या है क्या ईश्वर है भी या नहीं क्या ईश्वर सिद्ध हो भी सकता है या नहीं

हम जानते हैं कि आर्य समाज के दूसरे नियम के अनुसार “ईश्वर सच्चिदानंद स्वरूप निराकार सर्वशक्तिमान न्याय कारी दयालु अजन्मा अनंत निर्विकार अनादि अनुपम सर्वदा सर्व आधार सर्वेश्वर सर्व अंतर्यामी अजर अमर अभय नित्य पवित्र और सृष्टि कर्ता है” उसी की उपासना करना योग्य है आज का मेरा विषय यही था कि हम जाने कि हमारी जमीनी हकीकत क्या है तो आइए जानते हैं कि ईश्वर है या नहीं सबसे पहले अस्तित्व की चर्चा करते हैं की ऐसी कोई चीज है भी या नहीं ऐसा भी हो सकता है की ऐसी कोई चीज एक्जिस्टिंग ना करती हो और हमें बहका दिया गया हो और हम वह कर अंधे कुएं में गिरते जा रहे हैं और जिसका कोई सिरा आने वाला नहीं है बहुत से लोग संसार में यह मांगते हैं कि ईश्वर नाम की कोई वस्तु होती ही नहीं अगर है कि नहीं तो ऐसी चीज के पीछे समय खराब करने का कोई औचित्य नहीं।

आओ थोड़ा सा विचार करते हैं पहले अस्तित्व पर विचार करते हैं अगर ईश्वर नहीं है तो उसे भी स्वीकार करेंगे और अगर ईश्वर है तो उसे भी स्वीकार करना।

इस बात को हम एक उदाहरण से समझने की कोशिश करते हैं। हम प्राय दुनिया में देखते हैं कि कोई भी सरल या जटिल मशीन या व्यवस्था किसी ना किसी ने बनाई होती है हम मोबाइल कंप्यूटर रॉकेट और किसी अन्य वस्तु का भी उदाहरण ले सकते हैं तो हम इससे यह सिद्धांत बना सकते हैं की बिना व्यवस्थापक की कोई व्यवस्था नहीं हो सकती।

तो हम सबसे पहले सिद्धांत पर चर्चा करते हैं और सिद्धांत है कि संसार में कोई व्यवस्था व्यवस्थापक के बिना नहीं हो सकती अगर संसार में कोई व्यवस्था है इसका सीधा कारण यह है कि कोई व्यवस्थापक भी है क्योंकि बिना व्यवस्थापक के संसार में कोई व्यवस्था नहीं बन सकती। बिना व्यवस्थापक के व्यवस्था का होना झूठी बात है कल्पना है मूर्खता है अंधविश्वास है तो सच यह है की व्यवस्था है तो व्यवस्थापक है

सर्वज्ञ

अब हम उदाहरण लेते हैं मनुष्य शरीर का जोकि बिना अपवाद के दुनिया की सबसे जटिल मशीन है माना जा सकता है अगर हम इस बात पर ध्यान दें कि मनुष्य के शरीर को बनाने वाला कौन हो सकता है माता पिता या फिर बायलॉजी लेकिन इस पर भी विचार करने के बाद हम पाते हैं कि ना तो पिता नाही माता और ना ही बायलॉजी अपने आप में शरीर की रचना कर सकती है तो इससे हम यह समझ सकते हैं कि इस व्यवस्था को बनाने वाला भी कोई व्यवस्थापक है और क्योंकि यह व्यवस्था सबसे अच्छी और सबसे जटिल है तो इसकी व्यवस्था करने वाला भी बहुत बुद्धिमान होगा और जो दुनिया में सबसे बुद्धिमान होता है उसे सर्वज्ञ कहते हैं.

चेतन

संसार में मिलने वाली सभी वस्तुओं को हम दो हिस्सों में विभाजित कर सकते हैं जड़ और चेतन जड़ उसे कहते हैं जिसमें कोई जीवन ना हो और चेतन जिसमें जीवन हो तो अब हम इस बात पर चर्चा कर सकते हैं कि जानने वाला या फिर सब कुछ जानने वाला चेतन होता है और जो चेतन हो और सब कुछ जानता हो वह होता है अर्थात उसकी एक्जिस्टेंस है।

निराकार

जिसका कोई आकार नहीं होता उसे निराकार कहते हैं और क्योंकि आकार किसी वस्तु को सीमित करता है इसलिए ईश्वर बिना आकार वाला है अर्थात निराकार है

सर्वशक्तिमान

सर्वशक्तिमान का अर्थ मूलत यह लिया जाता है कि वह जो चाहे सो कर सके। लेकिन यह ठीक प्रतित नहीं होता। क्योंकि अगर हम यह मान लें कि वह सब कुछ कर सकता है तो यह भी मानना पड़ेगा कि ईश्वर अपने आप को मार कर और अनेक ईश्वर बनाकर स्वयं अविद्वान बन कर चोरी व्यभिचार पाप कर्म इत्यादि दुख कर्म करके खुद दुखी हो सकता है जैसे यह काम ईश्वर के गुण कर्म और स्वभाव के विरुद्ध हैं अर्थात कभी नहीं हो सकते तो हमारा यह मानना ही गलत है तो अब देखते हैं सर्वशक्तिमान होने का असल अर्थ इसका अर्थ है ईश्वर अपने काम अर्थात उत्पत्ति पालन प्रलय आदि और सब जीवो के पुण्य पाप की व्यवस्था करने में किसी का सहारा नहीं लेता बल्कि अपने ही सामर्थ्य से सब कार्य पूर्ण कर लेता है

दयालु और न्यायकारी

ईश्वर न्याय कारी है क्योंकि वह किसी को भी अपने किए से ज्यादा या कम फल नहीं देता

अजन्मा

जिसका कभी जन्म ना हुआ हो उसे अजन्मा कहते हैं

अनंत

जिसका कोई अंत ना हो अर्थात जो बिना अंत वाला हो उसे अनंत कहते हैं

निर्विकार

अनादि

जिसका कोई आदि अर्थात शुरुआत ना हो उसे अनादि कहते हैं

अनुपम

जिसकी तुलना करनी किसी से भी योग्य ना हो या फिर यह कहे कि जो किसी से तुम ही है ना हो उसे अनुपम कहते हैं

सर्वाधार

जिसमें कोई विकार जन्म नहीं लेता उसे निर्विकार कहते हैं जो सब चीजों चीजों का आधार हो उसे सर्व आधार कहते हैं

सर्वेश्वर

सर्व अंतर्यामी

जो सब चीजों के अंदर बाहर को जानता हूं उसे सर्वांतर्यामी कहते हैं

अजर

जो कभी बूढ़ा ना हो उसे अजर कहते हैं

अमर

जो कभी मरे ना उसे अमर कहते हैं

अभय

जिसे किसी कब है ना सताता हो उसे अभय कहते हैं

नित्य

जो हमेशा से हो और हमेशा रहे उसे नित्य कहते हैं

सृष्टिकर्ता

सृष्टि बनाने वाले को सृष्टि करता कहते हैं

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